हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर खींचतान जारी है। चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी को राज्य में नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। 20 साल में यह पहली बार है कि कांग्रेस को इस स्तर पर संघर्ष करना पड़ रहा है, जबकि आमतौर पर चुनाव के 15 दिन के भीतर नेता प्रतिपक्ष का नाम फाइनल हो जाता था। इस बार पार्टी के भीतर अलग-अलग गुट सक्रिय हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है।
कांग्रेस का पिछला प्रदर्शन और गुटबाजी
हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिरता गया है। 2009 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन बहुमत से पीछे रहने के कारण उसे निर्दलीय विधायकों और जनहित कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी। इसके बाद कांग्रेस राज्य में सत्ता में नहीं आ सकी। 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, और इस बार भी केवल 37 सीटें ही मिल पाईं। पार्टी में चल रही गुटबाजी ने हालात और पेचीदा बना दिए हैं।
हुड्डा और सैलजा गुट में संघर्ष
पार्टी में इस समय मुख्य रूप से दो गुट सक्रिय हैं—एक गुट का नेतृत्व भूपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं, जबकि दूसरा गुट कुमारी सैलजा का है। पिछले विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा को विपक्ष का नेता बनाया गया था, लेकिन इस बार पार्टी के भीतर ही कई नेता उन पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। सैलजा गुट ने हुड्डा को फिर से नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने का विरोध किया है।
हुड्डा समर्थक विधायकों ने हाल ही में दिल्ली में इकट्ठा होकर अपनी ताकत दिखाई, जिसमें 31 विधायकों ने उन्हें समर्थन देने की बात कही। इस बीच सैलजा गुट की ओर से पंचकूला के विधायक चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम आगे बढ़ाया जा रहा है।
हाईकमान के साथ बातचीत और ऑब्जर्वरों की रिपोर्ट
18 अक्टूबर को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के लिए चंडीगढ़ में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता और ऑब्जर्वर अशोक गहलोत, अजय माकन, प्रताप सिंह बाजवा और टीएस सिंह देव शामिल हुए। इस बैठक में सभी विधायकों से वन-टू-वन बातचीत कर उनकी राय ली गई। अधिकतर विधायकों ने भूपेंद्र हुड्डा का नाम आगे रखा, जबकि सैलजा गुट के कुछ विधायकों ने नए चेहरे की वकालत की।
बैठक के बाद अशोक गहलोत और अजय माकन ने बताया कि विधायक दल के नेता का चयन हाईकमान द्वारा किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सभी विधायकों की राय हाईकमान तक पहुंचा दी गई है और जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष के लिए संभावित नाम
अगर हुड्डा को विपक्ष का नेता नहीं बनाया जाता है, तो उनके गुट से झज्जर की विधायक गीता भुक्कल और थानेसर के विधायक अशोक अरोड़ा का नाम भी चर्चा में है। दूसरी ओर, सैलजा गुट से चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी एक नए चेहरे को मौका दे सकती है ताकि आंतरिक विवाद को खत्म किया जा सके और पार्टी को एक नई दिशा दी जा सके।
कांग्रेस में हार के कारणों का विश्लेषण
कांग्रेस ने हरियाणा में मिली हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी भी बनाई थी। इस कमेटी में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के कांग्रेस नेता हरीश चौधरी शामिल थे। कमेटी ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव हारने वाले 53 कांग्रेस नेताओं से व्यक्तिगत बातचीत की और चार प्रमुख सवाल पूछे। इसके बाद एक रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें कहा गया कि हार का कारण ईवीएम की बजाय पार्टी में तालमेल की कमी और गुटबाजी थी।
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नेता प्रतिपक्ष का चयन अनिवार्य
हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र नवंबर में शुरू होने की संभावना है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने इस बारे में जानकारी दी है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस को नवंबर के पहले हफ्ते में नेता प्रतिपक्ष का नाम फाइनल करना होगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो कांग्रेस बिना नेता प्रतिपक्ष के ही विधानसभा सत्र में भाग लेगी, जो पार्टी के लिए एक गंभीर स्थिति हो सकती है।
कांग्रेस के सामने चुनौतियां
हरियाणा में कांग्रेस का इस बार का प्रदर्शन उम्मीद से काफी कमजोर रहा। चुनाव से पहले पार्टी 2024 में सरकार बनाने का सपना देख रही थी, लेकिन अंत में वह सिर्फ 37 सीटों पर सिमट गई। इसके अलावा, गुटबाजी के कारण पार्टी का एकजुट चेहरा भी सामने नहीं आ पा रहा है। कांग्रेस हाईकमान को इस समस्या का समाधान करने के लिए जल्द निर्णय लेना होगा ताकि पार्टी एकजुट होकर विपक्ष की भूमिका निभा सके।